बाजारों की काली दिवाली

बाजारों की काली दिवाली
 -रौनक, ग्राहकी सब कुछ गायब -जीएसटी का फर्क और नोटबंदी का असर -जिन व्यापारियों ने माल खरीद लिया, उनका ब्याज भी नहीं निकल रहा -7वें वेतन आयोग के लागू नहीं होने का भी पड़ा है फर्क
रोशनलाल शर्मा
जयपुर। ‘एक वो भी दिवाली थी, एक ये भी दिवाली है, उजड़ा हुआ गुलशन है और रोता हुआ माली है।Ó किसी जमाने प्रख्यात गायक कलाकार मुकेशचन्द्र जोरावरचन्द्र माथुर गाया यह प्रसिद्ध गाना इस बार दीपावली पर सटीक बैठ रहा है। जहां हर वर्ष भारत के इस सबसे बड़े बाजार में अरबों रुपए का धंधा होता है, वहीं इस बार व्यापारी खाली बैठे हैं। बाजारों में रौनक और ग्राहकी सब कुछ गायब है। है तो सिर्फ मुफलिसी और अनजाना सा डर।
दीपावली को अब महज एक सप्ताह भी नहीं बचा है। इसके बावजूद बाजार पूरी तरह से सुस्त पड़ा है। न तो रेडिमेड कपड़ों का मार्केट उठा है और न ही वाहन बाजार। इलेक्ट्रोनिक्स और फुटवियर के भी कमोबेश यही हालात हैं। बाजार में पैसा ही नहीं है।
हर वर्ष दिवाली पर यदि एक सप्ताह पहले तक एक करोड़ रुपए का बिजनेस हो जाता था तो इस बार यह आंकड़ा पचास लाख रुपए भी नहीं पकड़ पा रहा है। कई क्षेत्रों में तो व्यापारियों ने दिवाली को सामने देखकर माल भर लिया था, उनका ब्याज भी निकल नहीं पा रहा है। व्यापारी के लिए ये दीपावली काली दीपावली साबित हो रही है। व्यापारियों ने अपनी तैयारी कर्मचारियों को मिलने वाले बोनस और 7वें वेतन आयोग के मिलने वाले एरियर की संभावना देखकर की थी लेकिन राज्य सरकार ने वेतन आयोग का लाभ रोक दिया है। आतिशबाजी के त्यौहार दीपावली पर इस बार आतिशबाजी भी फीकी रहने वाली है। इस व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि पटाखों पर 28 प्रतिशत जीएसटी है। इस वजह से थोक का माल नहीं आ रहा है। इस बार कम से कम पचास फीसदी माल की आपूर्ति कम है। हालांकि पटाखों का व्यापार अन्तिम तीन दिनों में होता है। मिठाई से जुड़े व्यापारियों की भी हालत यही है। यहां भी बिक्री आधी ही रह गई है।
दीपावली पर धंधे की यह दुर्गति जीएसटी ने तो की ही है, साथ ही पिछले वर्ष की नोटबंदी दीपावली के बाद हुई थी, इसलिए मार्केट पर अधिक असर देखने को नहीं मिला था लेकिन नोटबंदी के साइड इफेक्ट्स इस दीपावली पर दिखाई दे रहे हैं।
इलेक्ट्रोनिक मार्केट
इलेक्ट्रोनिक मार्केट पर जीएसटी और नोटबंदी का फर्क पड़ा है। इसमें इजी फाइनेंस सुविधा होने के बावजूद लोगों ने इस बार इलेक्ट्रोनिक मार्केट से दूरी बना रखी है। इस  बिजनेस से जुड़े जवाहर नगर स्थित जैन इलेक्ट्रोनिक के निदेशक महेन्द्र जैन का कहना है कि मार्केट बिल्कुल ढीला चल रहा है। हमारे बिजनेस में खरीददारी का अस्सी प्रतिशत हिस्सा अब तक हो चुका होता है लेकिन इस बार बीस प्रतिशत माल भी नहीं बेच पाए। अब सिर्फ धनतेरस से ही आशा बनी हुई है। देखते हैं क्या होता है?
पटाखे
पटाखों पर 28 फीसदी जीएसटी के कारण इस बार राजधानी जयपुर में पचास फीसदी ही माल आया है। यहां पर शिवकाशी से पटाखे आते हैं। लेकिन इस बार न तो थोक विक्रेता मॉल भेज रहे हैं और न ही खुदरा विके्रता माल ले रहे हैं। इस बार खुदरा दुकानें भी कम खुली हैं और जो खुली है उन्होंने भी पिछले साल की अपेक्षा आधा ही माल रखा है। पटाखों के खुदरा विके्रता नरेन्द्र शर्मा कहते हैं कि वे दुकान अब लगाएंगे। इस बार माल कम बिकेगा लेकिन पटाखे का जितना भी धंधा होता है वह अन्तिम तीन दिन में होता है। उपभोक्ता पटाखे सबसे अंत में खरीदता है।
मिठाइयां
हालांकि मिठाई की दुकानदारी अन्त के दो दिन ही होती है। इसके बावजूद मिठाई की बिक्री भी बुरी तरह से प्रभावित दिखाई देती है। इस त्यौहार पर मावे की मिठाई अधिक बिकती है। इसे लेकर खुदरा मिठाई विक्रेता आठ से दस दिन पहले मावे का आर्डर बुक करा देते हैं। इस बार स्थिति विपरीत है। जयपुर के बड़े मावा व्यापारी मैसर्स लादूराम नानगराम के निदेशक बाबूलाल शर्मा का कहना है कि हर वर्ष दिवाली के पूर्व जो धंधा रहता है, उसका पचास फीसदी भी इस बार देखने को नहीं मिल रहा है।
फुटवियर
जूते-चप्पल तो ऐसी चीज है जो आवश्यकता की श्रेणी में आ सकती है लेकिन इस बार दीपावली पर इसके व्यापारी भी हताश है। सिटी मॉल में फुट-सी के निदेशक गुलशन मक्कड का कहना है कि इस बार तो औसत बिक्री भी नहीं आ रही है। हमने दीपावली देखकर माल का स्टॉक कर लिया था लेकिन लगाए गए पैसे का ब्याज भी नहीं निकल पाया है।
रेडिमेड कपड़े
दीपावली पर सबसे अधिक धंधा कपड़ों का होता है। गरीब से गरीब आदमी भी इस त्यौहार पर नए कपड़े खरीदने की कोशिश करता है। पिछले एक दशक से दर्जी के यहां कपड़े सिलाने का रिवाज बहुत कम हो गया है और अब रेडिमेड कपड़ों का रिवाज चल निकला है लेकिन यह दीपावली कपड़ा व्यापार के लिए बहुत बुरी साबित हुई है।  इस धंधे में होलसेल व्यापार से जुड़े मैसर्स इम्पल्स के निदेशक पवन आहूजा का कहना है कि जीएसटी को व्यापारी समझा नहीं है। यही कारण है कि वह अपने पुराने स्टॉक पर ही यह दिवाली निकाल रहा है। वह अपना पुराना स्टॉक ही क्लीयर करने में लगा है। कपड़ों की खरीददारी पचास प्रतिशत भी नहीं रही है।
वाहन व्यापार
वाहन व्यापार भी नार्मल चल रहा है। दीपावली जैसी स्थिति नहीं है। बुकिंग की स्थिति चौपहिया वाहनों पर तो फिर भी देखने को मिल रही है लेकिन वह भी पिछली बार से चालीस फीसदी ही है। लेकिन दुपहिया वाहनों की बिक्री प्रभावित हुई है। टीवीएस मोटर्स से जुड़े मार्केट प्रतिनिधि राज का कहना है कि सब कुछ नार्मल है, एक्स्ट्रा कुछ भी नहीं है।
कर्मचारी बोनस भी खर्च नहीं कर रहे
बात करें राज्य कर्मचारी की तो कर्मचारी को सिर्फ बोनस पर ही संतोष करना पड़ा है। बोनस से उसके आवश्यक खर्च ही पूरे हो रहे हैं। राज्य कर्मचारी को पूरी आशा थी कि पिछली हुई कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे 7वें वेतन आयोग पर फैसला कर लेंगी तो उनकी दीपावली अच्छी मिल जाएगी। यदि 7वें वेतन आयोग पर फैसला हो जाता तो औसतन एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को करीब चालीस हजार रुपए एरियर के रूप में मिलते। एक एलडीसी को करीब 55 से 60 हजार रुपए एरियर के रूप में मिलते। इस प्रकार बड़े अफसरों तक एरियर की राशि करीब एक लाख रुपए तक जा सकती थी। ये हो जाता तो मार्केट में पैसे की बरसात हो सकती थी।

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