रोशनलाल शर्मा
इस देश का दुर्भाग्य है कि यहां पर महामारी भी लोगों के लिए अवसर बन जाती है। किसी के लिए उत्सव भी बन जाता है। बना ही ना। एक बार तो थाली और ताली बजाकर कोरोना त्यौहार मनाया गया। और त्यौहार तो फिर भी एक साल में एक बार आते हैं लेकिन कोरोना का दूसरा त्यौहार वापिस दस दिन में ही आ गया और लोगों ने घरों में दीपक जलाए, पटाखे छोड़े मतलब कोरोना दीपावली मनाई। आजकल राजस्थान में कोरोना का मतलब है कमाई करो ना। जी हां। कालाबाजारी पर रोक के तमाम दावों के बावजूद प्रदेश में हर चीज की कीमतें मनमानी वसूली जा रही है। सब्जी और आटे दाल की कीमतें सरकार ने तय तो कर दी लेकिन उन तय कीमतों पर व्यापार नहीं हो पा रहा है। तय कीमतों पर व्यापार कराने वाली एजेंसियां लॉकडाउन का पालन कर रही है और घरों पर बैठी है।
तभी तो एकाध जगह को छोड़कर कालाबाजारी करने वाले व्यापारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। जिन पर कार्रवाई की गई कि वे भी छोटी मछलियां थीं। बड़ी मछलियों पर हाथ नहीं डाला गया है। छोटा व्यापारी तो बेचारा क्या करेगा उसके पास आगे से ही माल महंगा आएगा तो वह भी महंगा ही बेचेगा। दरअसल चोर की मां को मारने की कोशिश नहीं की गई। और कोशिश करे भी कौन प्रदेश में लॉकडाउन चल रहा है। ये तो पुलिस, चिकित्साकर्मी, सफाई कर्मी और मीडियाकर्मियों की ही मजबूरी है कि उनको काम करना पड़ रहा है अन्यथा बच्चे तो उनके भी है। क्या रसद विभाग या जिम्मेदार किसी भी विभाग का अमला गुप्तचर बनकर कालाबाजारियों की धरपकड़ नहीं कर सकता। अभी तो सब पकड़ में आ जाएंगे लेकिन करे कौन? प्रदेश में लॉकडाउन है और अफसरों और कर्मचारियों को तो उसकी पालना करनी है। यहां पर राज्य सरकार को भी कहना चाहूंगा कि उसे रसद विभाग या जिम्मेदार किसी भी विभाग के अफसरों और कर्मचारियों को काम पर बुलाकर फील्ड में उतारना चाहिए और बड़े व्यपारियों पर नजर रखनी चाहिए। प्रदेश में व्यसन की वस्तुओं को बिक्री करने वाले तो मालामाल ही हो गए हैं। जी हां पान मसाला और जर्दा खाने वाले बैचेन हैं और खिलाने वाले चांदी की बंसी बजा रहे हैं। पांच रुपए वाला मसाला दस रुपए से पन्द्रह रुपए में और दस रुपए वाला मसाला बीस से पच्चीस रुपए प्रति पाऊच बिक रहा है। शराब की तो पूछो ही मत। शराब ठेकेदारों के लिए तो लॉकडाउन वरदान बनकर आया है। तीन से चार गुना कीमतों पर शराब बेची जा रही है। दरअसल व्यसन कहते ही इसे हैं, कि चाहे जमीन जायदाद बिक जाए लेकिन व्यसनी व्यसन जरूर करता है। इसलिए शराब पीने वाला और पान मसाला खाने वाला अपनी आदत से मजबूर होकर तीगुने चौगुने दामों में भी खरीद रहा है। चूंकि इन दोनों उत्पादों की बिक्री पर सरकार की रोक नहीं है तो सरकार की ये जिम्मेदारी बनती है कि वह इनकी कालाबाजारी भी रोके।
कोरोना का ये कहर कमाई का अवसर बन गया है। चंद व्यापारियों के लिए ये अपनी तिजोरियां भरने का अवसर है। भले कोरोना उनके दरवाजे पर खड़ा होकर अन्दर आने के लिए तैयार है लेकिन वे इस मुसीबत के समय भी देश के आम आदमी का खून चूसने से बाज नहीं आ रहे हैं। न जाने इस पैसे को कहां लेकर जाएंगे।
ये सही है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश के लोगों के जीवन की रक्षा को सर्वाेपरि मानकर काम कर रहे हैं। उन्होंने अच्छे फैसले लिए और बढिय़ा कदम उठाए। इतनी अग्रिम सोच रखी कि केन्द्र सरकार भी पीछे रह गई। जी हां कोरोना संकट में अपूर्व फैसले लेने वाला राजस्थान पहला राज्य भी बना यही कारण है कि यहां लोगों की मृत्युदर कम रही है। लेकिन मुख्यमंत्री के अच्छे फैसलों के बावजूद क्रियान्वयन ढंग से नहीं हो पा रहा है। जरुरतमंद लोगों को राशन बांटा जा रहा है लेकिन उसमें मुंह देखकर तिलक हो रहे हैं। ताज्जुब है कि राशन बांटने वाले अपने वोटों के हिसाब से राशन बांट रहे हैं। मानवता न जाने किस कौने में जाकर छिप गई है। जिसको जरूरत है उसे राशन नहीं मिल पा रहा है लेकिन जिनके परिवारों में तीन-तीन लोग सरकारी नौकरियां कर रहे हैं उनके यहां राशन भी बदस्तूर पहुंच रहा है। सेनेटाइज कहां हो रहे हैं किसी को पता नहीं है। नगर निगम में सेनेटाइज के लिए फोन कर दो तो नम्बर तो मिल जाता है लेकिन सेनेटाइज नहीं किया जाता है। हां वहां किया जाता है कि जहां एमएलए साहब की इच्छा होती है। कहा जा रहा है कि देश में राजस्थान ही एक ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक सैम्पलिंग हुई है। संख्या करोड़ों में बताई जा रही है जबकि जमीनी हकीकत यह है कि अब तक जयपुर के दस प्रतिशत हिस्से में भी सैम्पलिंग नहीं हुई है। अब समय है कि नीचे के अधिकारी और कर्मचारी सरकार की घोषणाओं का क्रियान्वयन ढंग से करें क्योंकि लोगों को परेशानी हुई तो लोग लॉकडाउन धरा रह जाएगा। इसकी जिम्मेदारी फिर किसकी होगी। ये सोचना जरूरी है।
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