शराब: क्या कोई अमृत है

शराब: क्या कोई अमृत है

ऐसी कहावत हैकि जब बुरे दिन आते हैं तब वे कह कर नहीं आते। कोरोना जैसी महामारी भी ऐसे ही अचानक प्रकट हुई और दुनियाभर में कहर का कारण बन गई। हैरानी यह हैकि ऐसे घोर संकट के वक्त में भी ऋषि-मुनियों का देश कहे जाने वाले भारत में सत्ताधीशों को शराब से कमाई करने की सूझ उत्पन्न हो गई। जैसे वह कोई भगवान का ‘चरणामृत’ हो, जिसे पीने से ‘कोरोना’ भाग जाएगा। दरअसल यह छूट कोढ़ में खाज की तरह चरितार्थहोगी। अब यह सवाल कौन पूछे कि हे सत्ताधीशों! क्या संकटकाल में शराब की छूट बर्बादी व विनाश की राह नहीं है? लगता हैसत्ताधीशों को ऐसे प्रश्नों से अब कतईडर नहीं लगता। वे निडर हो चुके।इसीलिए समूचे भारत के लिए यह घोर दुर्भाग्य का पहलू है कि एक तरफ कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा। दूसरी तरफ ४० दिन उपरांत लॉकडाउन में ढिलाई देते हुए जब शराब की दुकानें खोलने की छूट दे दी गई, तब पीने वालों की हर जगह कतारें लग गई। वे ऐसे उमडऩे लगे जैसे जन्म-जन्म के प्यासे हों। शायद दारू से गला तर किए बिना वे मर जाएंगे।तभी तो दारू की दुकानें-ठेके खुलने से पहले प्रात:५ बजे ब्रह्ममुहूर्त में ही हजारों-हजारों की संख्या में घरों से निकल पड़े और मदिरा की दुकानों के समक्ष आकर लाईन में ऐसे खड़े हो गए, जैसे वहां ‘अमृत’ मिल रहा हो। हैरान-परेशान करने वाला तथ्य यह भी है कि बहुत सी जगह शराब खरीदने व उसे गटकने के लिए बेताब लोगों की लाइन कई-कई किमी लम्बी दिखाई दी वहीं कईजगह जबरदस्त भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठियां बरसानी पड़ गई। इससे बढक़र चिंता का शर्मनाक पहलू और क्या होगा कि शराब की बोतलें खरीदने के लिए अनेक जगह नारी शक्ति की प्रतीक महिलाएं भी कतार में लगी हुई नजर आईं। गरीब-अमीर, सभी जाति-धर्म-समुदाय-पंथ-वर्ग-भाषा और पढ़े-लिखे तबके के लोग सब काम-काज छोड़ जिस प्रकार से दौड़-दौड़ कर शराब खरीदने आ-जा रहे थे, वे वाकईमें बहुत चौकान्ने वाले दृश्य थे। उसका कारण है कि जब देश-विदेश का समूचा चिकित्सा विज्ञान, डॉक्टर्स, वैद्य-हकीम, स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञ, मेडिकल साइंस पर रिसर्चकरने वाले एक्सपर्ट बार-बार यह कह रहे हैं कि कोरोना जैसी भयंकर बीमारी में शराब का उपयोग बहुत हानिप्रद है, इससे दूर रहें। उसके बाद भी उस विनाशकारी शराब के लिए देश के तकरीबन हर राज्य में जिस प्रकार से सुरा प्रेमियों का हुजूम उमड़ा, वह किसी गंभीर चिंता से कम नहीं है। इतनी भीड़ व कतारें तो देश में कोरोना संकट काल में नि:शुल्क राशन किट व फ्री में भोजन के पैकेट लेने के लिए भी कहीं नहीं लगी। दारू पाने के लिए सरेआम सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ी धज्जियां, एक-दूसरे पर गिरते, धक्का देते, चिपकने जैसी हालत और मुंह पर मास्क भी नहीं की लापरवाही-मनमानी यह जाहिर करती है कि ऐसे शराबियों को अपनी जिंदगी की कोई परवाह नहीं रही। यह तो गनीमत है कि शराब मुंह मांगी नगद राशि देने पर सुलभ हो रही है। यदि वह मुफ्त में वितरित होने लगे, तब क्या हालत होते? शायद फिर तो लोग फ्री में दारू पाने के लिए आपा खोकर अपने आगे-पीछे खड़े लोगों का मर्डर करने से भी नहीं चूक पाते! दिल्ली सरकार द्वारा शराब पर अचानक स्पेशल कोरोना फीस यानी ७० प्रतिशत नया टैक्स लगाने के उपरांत भी शराबियों की संख्या में कोईकमी न आना और जमकर शराब की खरीद के लिए कतारों में लगना भारत जैसे आध्यात्मिक देश के लिए यह कोईअच्छा लक्षण नहीं है। भले ही इस संकटकालीन समय में सरकार को शराब की रिकॉर्डतोड़ बिक्री होने से अपने खाली हुए खजाने भरने का मौका मिल गया परंतु सोचने वाली बात यह है कि वैश्विक महामारी के इस अत्यन्त नाजुक समय में शराब के सेवन से कोरोना के क्या नए मरीज और भी ज्यादा नहीं बढ़ेंगे? संकटकालीन विषम परिस्थितियों के होते हुए भी महज एक दिन के भीतर प्रत्येक राज्य में करोड़ों-अरबों रुपए की शराब बिकने का यह रिकॉर्डहैरत में डालने वाला है। खासकर उस समय जब पूरा देश अर्थव्यवस्था की बिगड़ी स्थिति से बेहाल है। लाखों-करोड़ों गरीब लोगों के समक्ष भोजन तक का संकट खड़ा हुआ है। रोजी-रोटी खतरे में पड़ी हुई है, तब भी शराब के लिए पानी की तरह पैसा बहाना यह स्पष्ट करता हैकि मनुष्य का नैतिक पतन किस तीव्र गति से हो रहा है। एक-एक व्यक्ति जिस प्रकार से थैले भर-भर कर ४-५ घंटे तक लम्बी लाईनों में लगकर खुशी-खुशी और धड़ल्ले से शराब की बोतलें खरीदते नजर आए और रात में धुत्त होकर नशे में डूब गए, यह तस्वीर कलियुग के दुष्प्रभाव का साक्षात स्वरूप है। प्राचीन शास्त्रों के मुताबिक कलियुग के चरम का वक्त अभी बहुत दूर है परंतु लगता हैकि वह तो अब जल्दी ही प्रकट होने लगा है। जब करोड़ों लोग एक ही दिन में संकटकी घड़ी में गरीब-असहाय व जरूरतमंदों को रोटी-सब्जी-कपड़ा देने की जगह अपने शौक को पूरा करने के लिए विनाशकारी शराब से अपने कंठों को तर करने के लिए अरबों-खरबों रुपया बहाने को आतुर हो गए, तब सोचिए! आदमी की भ्रष्ट व बिगड़ी बुद्धि का क्या यह दिवाला नहीं है? क्या ऐसे नशेड़ी कंठों से निकली प्रार्थना, अरदास, अजान, गुहार परमात्मा सुनेगा? क्या उसे वाकई नशे में डूबते लोगों के प्रति दया-करुणा का भाव आ पाएगा? भारतीय ऋषि-मुनियों, विद्वानों, मनीषियों ने सच ही कहा हैकि कलियुग कोई परमात्मा के द्वारा नहीं वरन् पृथ्वीं लोक के मनुष्य की गलत पापोंयुक्त वृतियों के कारण ही अपना दुष्प्रभाव बढ़ा पाएगा। देश के समक्ष पहली मर्तबा लॉकडाउन जैसे बुरे हालात होते हुए भी शराब के लिए जिस प्रकार मारा-मारी मची, वह इस बात का संकेत है कि देर से आना वाला कलियुग अब जल्द ही अपना प्रलय जैसा स्वरूप प्रकट करेगा। कोरोना जैसी महामारी जिससे पूरी दुनिया थर्रा रही है। जो लाखों लोगों की जिंदगी लील चुका। लाखों-लाखों लोग मौत और जिंदगी के बीच झूल रहे हैं। भुखमरी के हालात पैदा हो गए। शव फूंकने के स्थान कम पडऩे लगे हैं। चहुंओर त्राहिमाम-त्राहिमाम के स्वर गूंज रहे हैं। ऐसे गंभीर वक्त में जहां प्रभु भजन व प्रार्थना की सबसे अधिक जरूरत है, उस समय परहित तो दूर अपना खुद का भला भी छोड़ नशे में डूबना, ऐसे दृश्य विनाश के भयावहतापूर्णपद चाप के हैं। इतिहास के पन्ने साक्षी हैं कि शराब की महज एक बुराई से बड़े-बड़े कुल-परिवार-राज्य-राष्ट्र बर्बाद हो गए। इसी शराब से नारायण श्रीकृष्ण द्वारा सोने से निर्मित द्वारकापुरी तक डूब गई, तब विवेकशून्य व बुद्धिहीन होकर दारू की बोतल में डूबने वालों का भी भविष्य कदापि अच्छा नहीं हो सकता। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे, फिलहाल यही प्रार्थना की जा सकती है। इस संदर्भमें यह कहना भी अप्रसांगिक नहीं होगा कि आफत बना कोरोना काल और लॉकडाउन जैसी स्थिति में जब ४० दिनों तक देश का अवाम बिना शराब के जीना व रहना सीख चुका, तब क्या शराब की बिक्री पर छूट दिया जाना अब जरूरी था? चूंकि जिस दिन से सरकारों ने शराब की दुकानें व देसी दारू के ठेके खोले हैं, तब से सुरा प्रेमियों ने लॉकडाउन के नियम-कायदों की जिस प्रकार से धज्जियां उड़ाईहैं, उससे वर्तमान कठिन समय में कईअन्य तरह की नई आशंकाएं उत्पन्न हो गई। दारू खरीदते वक्त सोशल डिस्टेंसिंग का जिस तरह से उल्लंघन हुआ और पियक्कड़ों की भीड़ टूट पड़ी, उससे कहीं शराब पर छूट आगे भारी न पड़ जाए। आश्चर्यकी बात यह है कि जब खुद सरकार व उसके हुक्मरान यह मानते हैं कि महामारी के वक्त में शराब की खपत बहुत नुकसानदेह व भयावह हालात उत्पन्न कर सकती है, तब उस पर छूट देने की जरूरत क्यों आ पड़ी? क्या बिगड़े हुए आर्थिक ढांचे को सुधारने के लिए स्वस्थ आदमी को शराब से बीमार अथवा उसे हैवान बनाकर राष्ट्र धर्म निभाया जाएगा? चूंकि शराब की बिक्री में छूट के बाद से अचानक कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में जिस प्रकार से बढ़ोतरी होने लगी है और खासकर महिलाओं पर अत्याचार, उनके साथ दुराचार व परिवार की आर्थिक स्थिति फटेहाल होने लगी है, उसका आखिर जिम्मेवार किसे ठहराया जाएगा? जिन साधारण लोगों को पहले ही लॉकडाउन से उत्पन्न आर्थिक संकट ने बुरी तरह से आहत कर डाला, वे अब दारू से होने वाली बर्बादी से कैसे बच पाएंगे? उन्हें कौन रोक सकेगा? शराब के साथ अपराधों का भी बढ़ जाना क्या देश के लिए अशुभ नहीं है? क्या शराब इतनी जरूरी हो गईकि उसे संकट की घड़ी में भी छूट देनी पड़ी? दु:खदपूर्णयह भी है कि भारत को आजादी दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के देश में शराब की नदियां बहाने वाले सत्ताधीश तनिक भी शर्मिंदा नहीं हैं। जिस बापू ने शराब को विनाश व बर्बादी का सबसे बड़ा कारण बताया, उस बुराईको देश-प्रदेश की तमाम सरकारें भीषण महामारी के संकटकाल में भी बढ़ावा देने पर आतुर हो चुकी। पूरे देश में इस वक्त भरपूर व सस्ता दूध होते हुए भी किसी राज्य सरकार ने इस बाबत गहराई से चिंतन नहीं किया कि जब पूरा देश ४० दिनों तक बिना शराब के निकाल चुका और उससे घर-परिवारों में शांति बनी हुई थी। अपराधों का ग्राफ कम व शराब की बदौलत होने वाली बीमारियां भी कम होने लग गई थी। लोगों की आर्थिक दशा भी अधिक खराब होने से टल चुकी, तब भी लॉकडाउन-३ के पहले दिन से ही दारू के मयखानों को छूट देना क्या यह सरकार का जनहितपूर्ण कदम है? सच यह है कि सरकार ने महामारी के वक्त में दारू पर छूट देकर बहुत बड़ा जनघाती व अविवेकपूर्ण कदम उठाया है। सम्पूर्ण राष्ट्र इसका आगे तगड़ा खामियाजा भुगतेगा। अफसोस इसे भी कहेंगे कि अपने को गांधीवादी कहने वाले सत्ताधीश भी संकट के वक्त में दारू पिलाकर अपना खजाना भरने में कतईशर्मसार नहीं हुए। उन्हें भी शायद आदमी की जिंदगी से अधिक फिलहाल अपना सरकारी खजाना भरना ज्यादा हितकर लग रहा है। तभी तो चहुंओर महामारी के प्रकोप में भी दारू धड़ल्ले से बेची जा रही है। जब सत्ताधीशों की सोच ही दारू पक्षधर बन चुकी, तब आगे निरीह इंसान का भगवान ही मालिक है। जब किसी राजा को ही महामारी के काल में अपनी प्रजा को दारू पिलाने से परहेज नहीं रहा, तब विनाश व बर्बादी से कौन बचाएगा? आईए! हम सब परमात्मा से प्रार्थना करें कि सत्ताधीशों को सद्बुद्धि दे।
-ओमप्रकाश गुप्ता
तिलक मार्केटके पास, अलवर
मो. ९००१०५९७९९

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