स्मृति शेष: स्व. भंवरलाल शर्मा नेता थे लेकिन जयपुर की जनता के लिए वे कभी नेता जैसे नहीं रहे

स्मृति शेष: स्व. भंवरलाल शर्मा नेता थे लेकिन जयपुर की जनता के लिए वे कभी नेता जैसे नहीं रहे

रोशनलाल शर्मा
जयपुर शहर में भारतीय जनता पार्टी के पर्याय भंवरजी भाईसाहेब शुक्रवार को अपनी गौरवमयी जीवन यात्रा समाप्त कर पारब्रह्म की शरण में चले गए। जयपुर की राजनीति में उनके जैसा न तो कोई था और न ही वर्तमान राजनीतिक हालातों में लगता है कि भविष्य में कोई होगा। अपने स्वच्छ राजनीतिक जीवन में उन्होंने सादगी का जो मापदण्ड स्थापित किया आज भी परकोटे वाले शहर में उसे याद किया जाता है। 1980 से 1998 तक हवामहल विधानसभा क्षेत्र में भंवर जी के मुकाबले में कांग्रेस किसी को सामने नहीं ला पाई। वे नेता थे लेकिन जयपुर की जनता के लिए वे कभी नेता जैसे नहीं रहे। वे कई बार राजस्थान की भाजपा सरकार में मंत्री रहे। स्वायत्त शासन और नगरीय विकास विभाग जैसा महकमा उनके पास रहा लेकिन मजाल जो उन्होंने अपनी चिरपरिचित सफेद कमीज और सफेद पेंट पर कभी भ्रष्टाचार का दाग लगने दिया। आज जहां मंत्री बनते ही कार्यकर्ताओं की फौज और गाडिय़ों का काफिला आ खड़ा होता है। वहीं भंवरजी भाई जी भाई साहब ने मंत्री रहते कभी ड्राइवर भी नहीं रखा। वे अपनी जिप्सी खुद चलाकर जयपुर शहर की सड़कों से गुजरते हुए और रास्ते में मिलने वालों से राम-राम करते सचिवालय पहुंचते थे। जैसा उनका खुदका परिधान सफेद था, वैसी ही उनकी जिप्सी भी सफेद हुआ करती थी।

वसुन्धरा राजे के राजस्थान पर्दापण से पूर्व भंवरजी भाई साहब को राजस्थान भाजपा की जिम्मेदारी दी गई थी। राजे जब प्रदेश अध्यक्ष का पदभार संभालने के लिए दिल्ली से जयपुर आई तब बिडला ऑडिटोरियम में हुए कार्यक्रम में भंवरजी ने उन्हें अपना कार्यभार सौंपा और तभी राजनीति से सन्यास की घोषणा भी कर दी। आज के जमाने में कौन है जो अपनी राजनीति की जमी जमाई दुकान को यूं छोड़ दें लेकिन भंवरजी के लिए राजनीति दुकान नहीं थी। पिछले करीब एक दशक से उनको दिखना बंद हो गया था। उम्र भी हो गई थी। आज निधन के समय उनकी उम्र करीब 96 वर्ष बताई जा रही है। बात शायद 1997 की है। कनक घाटी में गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज का परिचय सम्मेलन था। वे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उनके वहां पहुंचते ही आयोजकों ने उनको मंच पर बुलाया। भंवरजी भाई साहब ने प्रेम से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि समाज से ऊंचा कोई नहीं होता और समाज की जाजम सबसे बड़ी होती है। मैं जाजम पर बैठूंगा। वे पूरे कार्यक्रम में पीछे ही बैठे रहे। ऐसी उनकी सादगी थी। उम्र का उनके मस्तिष्क और राजनीति पर कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला। इस संवाददाता को करीब तीन वर्ष पूर्व वे विधानसभा की लिफ्ट में मिल गए। अभिवादन किया तो पूछा कौन? नाम जैसे ही बताया तो पहचान गए, ठेठ ढूंढाड़ी में बोले और पत्रकार कांई हाल। आज तो थां लोगां ने खूब मसालो मिलगो। उस दिन विधानसभा में खूब हंगामा हुआ था। अपने सिद्धान्तों के इतने अडिग व्यक्तित्व की एक विधानसभा चुनाव में उनकी पुत्री को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया था। अगले चुनाव में उनके छोटे बेटे की उम्मीदवारी की सिफारिश लेकर उनके ही समाज के प्रतिष्ठित एक पूर्व आईएएस, एक पूर्व जज, एक पत्रकार उनके जमवारामगढ़ स्थित लाली गांव के फार्म हाउस पर पहुंचे। प्रेम से मिले। अमरूद खिलाए और आने का प्रयोजन पूछा। बताते ही कहा कि वे किसी की सिफारिश नहीं करेंगे। यदि उनके पुत्र में काबिलियत होगी तो पार्टी उसे खुद टिकट दे देगी। आप लोग जानते हो कि मैं ऐसी पॉलिटिकल प्रेक्टिस का कभी हिस्सा नहीं बन सकता। करीब दो तीन साल पूर्व अन्तरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर श्री महर्षि गौतम समाज जागृति संस्था द्वारा उनका सम्मान उनके निवास पर किया गया था। जीवन में खूब सम्मान पा चुके भंवरजी भाई साहब बड़े प्रसन्न हुए और प्रशस्ती पत्र को पढ़वाया। राजस्थान में भाजपा के भीष्म पितामह के नाम से विख्यात भंवर जी से अभी हाल ही में 28 मार्च को लाकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर बात करके उनके हालचाल जाने थे। अभी 22 मई को उनकी शादी की 70वीं वर्षगांठ थीं। ऐसे थे भंवर जी भाईसाहब। भूतो: न भविष्यती।

भार्गव साहब बताते थे अपना गुरु
जयपुर के अविजित सांसद गिरधारीलाल भार्गव भंवरजी भाई साहब को अपना राजनीतिक गुरु बताते थे। एक दफा इस संवाददाता से औपचारिक बातचीत में भार्गव साहब ने इसे स्वीकार करते हुए था कि भंवरजी राजनीति में उनके गुरू हैं और उन्होंने उनके नेतृत्व में राजनीति का सफर शुरू किया था।

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