मोदी सरकार ने प्रजातंत्र के संचालन का सबक आज तक भी नहीं सीखा

मोदी सरकार ने प्रजातंत्र के संचालन का सबक आज तक भी नहीं सीखा

-कांग्रेस विधायकों की कूकस स्थित होटल में कार्यशाला

जयपुर। मोदी सरकार के छ: साल का लंबा अरसा पूरा होने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे मोदी सरकार अपने ही नागरिकों के खिलाफ युद्ध लड़ रही हो तथा मरहम लगाने की बजाय घाव दे रही हो। यह यकीनन आश्चर्यजनक है कि मोदी सरकार ने प्रजातंत्र के संचालन का सबक आज तक भी नहीं सीखा। सरकारें नागरिकों की बात सुनने, सुरक्षा करने, संरक्षण देने व सेवा के लिए हैं, न कि गुमराह करने, भटकाने व बांटने के लिए। जितना जल्दी मौजूदा सरकार को यह बात समझ में आ जाएगी, उतना जल्दी ही सरकार को इतिहास के पन्नों में अपनी भूमिका समझ आएगी।

ये बात शनिवार को कूकस स्थित होटल मैरियट में ठहरे हुए विधायकों और मंत्रियों की हुई वर्कशॉप में कांग्रेस नेताओं ने कही। कार्यशाला में प्रवासी मजदूरों के संकट, कोविड-19 – लॉकडाउन, अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति, आजादी के बाद न्यूनतम जीडीपी दर, आय की असमानता, आपराधिक कुप्रबंधन, लोकतांत्रिक संस्थानों के योजनाबद्ध दमन, किसान की आय दोगुनी करने के नाम पर छल, महंगाई एवं मोदी सरकार में असीम पीड़ा के छह साल आदि बिंदुओं पर चर्चा हुई। साथ ही परस्पर विचार-विमर्श एवं सवाल-जवाब भी हुए।

दोपहर 12 बजे से शुरू होकर लगभग ढाई घंटे चली कार्यशाला में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, एआईसीसी महासचिव केसी वेणुगोपाल, एआईसीसी महासचिव एवं राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट, पर्यवेक्षक एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय चीफ प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला, सांसद दीपेंद्रसिंह हुड्डा, सांसद राजीव सातव, सांसद मणिकम टैगोर एवं एआईसीसी से आए प्रभारी सचिवगण उपस्थित रहे।
वर्कशॉप को सम्बोधित करते हुए रणदीप सुरजेवाला ने अपने सम्बोधन में कहा कि भारी निराशा, अपराधिक कुप्रबंधन एवं असीम पीड़ा के छह साल निकले हैं। सातवें साल की शुरुआत में भारत एक ऐसे मुकाम पर आकर खड़ा है, जहां देश के नागरिक सरकार द्वारा दिए गए अनगिनत घावों व निष्ठुर असंवेदनशीलता की पीड़ा सहने को मजबूर हैं।

पिछले छ: सालों में देश में भटकाव की राजनीति एवं झूठे शोरगुल की पराकाष्ठा मोदी सरकार के कामकाज की पहचान बन गई। दुर्भाग्यवश, भटकाव के इस आडंबर ने मोदी सरकार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा तो किया, परंतु देश को भारी सामाजिक व आर्थिक क्षति पहुंचाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को याद रखना होगा कि बढ़ चढ़ कर किए गए वादों पर खरा उतरना ही असली कसौटी है। लेकिन ढोल नगाड़े बजाकर बड़े बड़े वादे कर सत्ता में आई यह सरकार देश को सामान्य रूप से चलाने की एक छोटी सी उम्मीद को भी पूरा करने में विफल रही तथा उपलब्धि के नाम पर शून्य साबित हुई है।

प्रधानमंत्री मोदी ने सुशासन का अपना ब्रांड, एक शब्द ‘विकासÓ के बूते बेचा था। इस काल्पनिक विकास के लिए उन्होंने ’60 साल बनाम 60 महीनेÓ का नारा लगाया। साल ‘2020Ó तक सभी वादों को पूरा करने के लिए मील का पत्थर स्थापित कर दिया गया। लेकिन आज सरकार के पास उपलब्धि के नाम पर दिखाने को क्या है? लेकिन 2017-18 में भारत में पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर रही। कोविड के बाद भारत की बेरोजगारी दर अप्रत्याशित रूप से बढ़कर 27.11 प्रतिशत हुई। मोदी सरकार के कार्यकाल में जीडीपी का मतलब हो गया है – ‘ग्रॉसली डिक्लाईनिंग परफॉर्मेंसÓ यानि ‘लगातार गिरता प्रदर्शनÓ। अधिकांश अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने वित्तवर्ष 2020-21 में नकारात्मक जीडीपी दर का अनुमान दिया है।
बैंकों को चूना लगाया, भारत के खजाने को लूटा

मोदी सरकार ने छ: सालों में बैंकों के 6,66,000 करोड़ रु. के ‘लोन राईट ऑफÓ कर दिए। छ: सालों में 32,868 ‘बैंक फ्रॉडÓ हुए जिनमें देश के खजाने को 2,70,513 करोड़ रु. का चूना लगा। प्रधानमंत्री मोदी ने 1 अमेरिकी डॉलर को 40 रुपए के बराबर करने के वादे के साथ सरकार बनाई थी। लेकिन मोदी सरकार के छ: सालों में भारतीय रुपया एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गया। 30 मई, 2020 को 1 अमेरिकी डॉलर 75.57 रु. के बराबर है।

कोविड से राहत एक ‘जुमला बना

20 लाख करोड़ रु. का कोविड-19 राहत पैकेज, जिसे प्रधानमंत्री जी ने जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर बताया था, वास्तव में जीडीपी का मात्र 0.83 प्रतिशत ही निकला। 60 दिनों से राहत दिए जाने का इंतजार कर रहे देशवासियों, खासतौर से किसानों, मजदूरों, गरीबों, लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए यह सबसे अधिक असंवेदनशील एवं निर्दयी छलावा है।

‘सबका साथ, सबका विकासÓ बनाम ‘मित्रों का साथ, भाजपा का विकास
मोदी सरकार के छ: साल में साबित हो गया है कि उनकी प्राथमिकता केवल मु_ीभर अमीर मित्रों की तिजोरियां भरना है। चंद अमीरों से सरोकार और गरीब को दुत्कार ही सरकार का रास्ता बन गया है। अमीर और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं, जबकि गरीब, जरूरतमंद एवं कमजोर वर्ग के लोगों को बेसहारा छोड़ दिया गया है।

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