रोशनलाल शर्मा
कोरोना वॉयरस के साथ अब देश की जनता को महंगाई के वायरस के साथ भी लडऩा होगा। हालांकि महंगाई वह मुद्दा है जो पिछले दो दशक से देश में चुनावों में अहम रोल निभाता है लेकिन कोरोना तो फिर भी नियंत्रित होता दिखाई दे रहा है और उसके मरीज रिकवर भी हो रहे हैं लेकिन महंगाई के वायरस से रिकवर होना लोगों को अब मुश्किल लग रहा है। देश की इकॉनोमी डीजल और पेट्रोल पर आधारित है और ये दोनों अब आम आदमी के हाथ से निकलते जा रहे हैं। जी हां देश में कच्चे तेल की कीमतें बहुत कम होने के बावजूद भी पेट्रोल डीजल की दरें अपने रिकॉर्ड पर हैं। राजधानी जयपुर में पेट्रोल करीब 87 रुपए लीटर तक आ पहुंचा है और ये महज पन्द्रह से बीस दिनों में इस पर बारह रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी देखी गई है। पेट्रोल डीजल के महंगे होने की वजह से सप्लाई भी महंगी हो गई है और इसका सीधा असर आम आदमी की रसोई तक पहुंच रहा है। आम आदमी को दोहरा नुकसान उठाना पड़ रहा है। एक तो उसे चलने के लिए पेट्रोल डीजल की कीमतें अधिक चुकानी पड़ी रही है और दूसरा यह है कि इनकी कीमतें बढऩे की वजह से खाने पीने की वस्तुएं भी महंगी होने लगी हैं। अनलॉक में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आग लगी है। पेट्रोल की कीमतें बढऩे के साथ इस साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है। राज्य सरकार के तीन बार वैट बढ़ाने से कीमतों में इजाफा हुआ है, जबकि केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी से भी कच्चे तेल पर टैक्स बढ़कर 107 फीसदी से 275 फीसदी तक हो चुका है। हालांकि लॉकडाउन में कीमतें बढऩे से लोगों पर खास फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वाहन चले ही नहीं। अनलॉक के बाद आवाजाही के साथ पेट्रोल-डीजल की खपत बढऩे से आम आदमी की जेब पर अब असर पड़ रहा है। बढ़ती कीमतों से अब उपभोक्ताओं की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही है। पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन ने बताया कि उपभोक्ता तो बढ़ी हुई कीमतों को लेकर कई बार फिलिंग स्टेशन के स्टाफ से बहस करते देखे जा रहे हैं। फल-सब्जी विके्रताओं का कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दाम का सीधा असर ट्रांसपोर्टेशन पर पडऩा शुरू हो गया है। इसमें 15 फीसदी तक असर संभावित है और इसका परिणाम आने वाले दिनों में सब्जी-फल की कीमतों पर दिख सकता है। फल-सब्जी महंगे हो सकते हैं। राज्य सरकार की ओर से 2 फीसदी किसान कल्याण शुल्क लगने से पहले ही मंडी का कारोबार प्रभावित हुआ है। लोगों की आमदनी लॉकडाउन में काफी प्रभावित हुई है, ऐसे में महंगे डीजल-पेट्रोल के चलते खासी परेशानी होने लगी है। प्रदेश की सरकार भी इसमें कुछ राहत दे सकती है। सरकार चाहे तो अपने स्थानीय कर कम सकती है लेकिन राजस्थान सरकार इस स्थिति में दिखाई नहीं दे रही। वैसे भी सरकार का आरोप है कि केन्द्र सरकार का उसका बड़ा पैसा रोक रखा है। ऐसे में वह आर्थिक बदहाली से दौर से गुजर ही है। अगर राजस्थान सरकार कुछ कदम भी उठाए तो वह अधिक कारगर साबित नहीं होंगे। सरकार ने अपने यहां का स्थानीय कर कुछ कम भी किया तो कितना फर्क पड़ेगा। महज दो से तीन रुपए लीटर, इससे कोई खास फायदा होना मुमकिन नहीं है। इसलिए केन्द्र सरकार के स्तर पर ही करों में कमी होने से आमजन को फायदा होगा और केन्द्र सरकार लगता है कि पूरी तरह से इस मसले पर कुछ सुनने की स्थिति में नहीं है। यही कारण है कि बीस दिन में पेट्रोल बढ़ रहा है और केन्द्र की तरफ एक बयान तक इस मसले पर सामने नहीं आया है। जानकार तो आशंका जता रहे हैं कि पेट्रोल सौ रुपए प्रति लीटर तक भी बिक सकता है और इसमें राष्ट्रवाद का तड़का लगाकर सरकार लोगों को चुप भी रखने में सक्षम है।