-कांग्रेस गहलोत-पायलट में और भाजपा राजे-पूनिया में बंटी
रोशनलाल शर्मा
जयपुर। प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियों में विवाद अब बहुत अधिक बढ़ गए हैं। दोनों ही पार्टियों में बड़े नेता अस्तित्व की लड़ाई लड़ने पर उतारू हैं। नेताओं की जुबां तो हालांकि बंद है लेकिन समर्थकों के मुंह से सब कुछ कहा जा रहा है। कांग्रेस तो प्रदेश में शुरू से ही गहलोत और पायलट के खेमे में बंटी है। अब भाजपा में भी वसुन्धरा राजे बनाम सतीश पूनिया होने की स्थिति आ गई है। प्रदेश में अभी आमचुनाव में तीन साल हैं लेकिन पार्टियों में आंतरिक राजनीति पूरी तरह चरम पर है। निकट भविष्य में प्रदेश में चार सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं और यह लड़ाई इस उपचुनाव में दोनों ही पार्टियों के लिए एक तरह की मुसीबत तो बन ही सकती है। हालांकि प्रदेश में कोई तीसरा विकल्प नहीं है।
पायलट को दूर रखना बना कांग्रेस में विवाद कारण
राहुल गांधी प्रदेश के दो दिवसीय दौरे पर आए और शनिवार शाम को चले भी चले भी गए लेकिन यहां पार्टी में एक बार फिर विवाद छोड़ गए। राहुल गांधी के दौरे के दौरान रूपनगढ़ में मंच से पायलट को दूर रखना और हनुमानगढ़-गंगानगर में चौथे स्थान पर कुर्सी देना पायलट समर्थकों को नागवार गुजरा है। इस बीच हाल ही में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद देने वाले प्रियंका गांधी के नजदीकी कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने सचिन पायलट को राहुल गांधी के मंच से उतारने पर सवाल उठा कर कांग्रेस की राजनीति में हलचल मचा दी है। किसानों के मुद्दे पर राहुल गांधी के दो दिन के दौरे में अब बहस कृषि कानूनों से ज्यादा सचिन पायलट को महत्व मिलने या न मिलने पर हो रही है। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने ट्वीट करके सचिन पायलट को मंच से उतारने पर तीखी टिप्पणी की है। प्रमोद ने लिखा है किसानों की पंचायत में किसान नेता को मंच से उतार कर किसानों का भला कैसे हो पाएगा, सवाल सचिन पायलट की तौहीन और इज़्ज़त का नहीं है, सवाल कांग्रेस के भविष्य का है। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने राहुल गांधी, अशोक गहलोत और सचिन पायलट को टैग भी किया है। प्रमोद कृष्णम के इस टृवीट के बाद सचिन पायलट समर्थकों ने भी सोशल मीडिया पर नाराजगी जाहिर करना शुरू कर दिया है। पायलट समर्थक अनदेखी पर सवाल उठा रहे हैं। गौरतलब है कि रूपनगढ़ में राहुल गांधी के मंच पर आते ही माइक पर ऐलान कर दिया था सब उतर जाएं, भाषण शुरू होते ही माकन और पायलट मंच से उतर गए थे, इसे पायलट के अपमान के रूप में देखा जा रहा है। राहुल गांधी ने जैसे ही भाषण देना शुरू किया, सचिन पायलट और अजय माकन ने आपस में बात की और दोनों ही मंच से नीचे उतर गए और फिर भाषण के अन्त तक वहीं खड़े रहे। राहुल गांधी के ट्रेक्टर में उन्हें जगह नहीं मिली। राहुल गांधी के साथ कार में भी पायलट को जगह नहीं मिली।
एकजुट राजे समर्थकों का आगाज: वसुंधरा के बिना भाजपा वापस नहीं आ सकती
उधर वसुंधरा समर्थक नेताओं ने कोटा में रविवार को एक निजी होटल में चिंतन शिविर आयोजित किया। इसे वसुंधरा गुट के पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत ने आयोजित किया। राजावत ने कहा कि आलाकमान ने राजे को दूर रखकर निगम, पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव करवाकर देख लिया और परिणाम भी भुगत रहा है। कार्यक्रम में अप्रेल महीने में वसुंधरा राजे की अगुवाई में हड़ौती संभाग में गहलोत सरकार के खिलाफ रैली का शंखनाद का ऐलान किया गया है। इस रैली में हड़ौती संभाग के 4 जिले कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ से 50 हजार कार्यकर्ताओं का जुटाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, भले ही अप्रैल में प्रस्तावित रैली कांग्रेस के खिलाफ करने की बात कही जा रही हो, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि असल में यह वसुंधरा राजे का शक्ति प्रदर्शन है। इसकी वजह भी है। चिंतन शिविर में 3 बार विधायक रह चुके और राजे गुट के माने जाने वाले भाजपा नेता भवानीसिंह राजावत ने हाल ही में हुए निगम चुनाव, पंचायत चुनाव व स्थानीय निकाय चुनाव का जिक्र किया। राजावत ने कहा कि आलाकमान ने वसुंधरा राजे को दूर रखकर निगम चुनाव, पंचायत चुनाव व स्थानीय निकाय चुनाव करवाकर देख लिया और परिणाम भी भुगत रहा है। पार्टी की ऐसी दुर्गति को देखकर आम कार्यकर्ता चिंतित है। इस कुशासन से मुक्ति पाने के लिए वसुंधरा राजे ही एकमात्र विकल्प हैं जो पार्टी में नई जान डाल सकती हैं। जरूरी हो गया है कि वसुंधरा राजे को आगामी मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करके ही भाजपा चुनाव मैदान में उतरे तब ही कांग्रेस के कुशासन से जनता को मुक्ति मिल सकती है। राजे समर्थक पूर्व विधायक प्रह्लाद गुंजल ने कहा कि कुछ लोग आज मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं। लेकिन मैं दावा करता हूं कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व के बगैर भाजपा का राज वापस नहीं आ सकता। वहीं, राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्याम शर्मा ने कहा कि पार्टी को लाखों कार्यकर्ताओं ने अपने पसीने के दम पर खड़ा किया है। आज व्यक्ति विशेष के इशारे पर संगठन में पदाधिकारी बनाना, चुनाव में प्रभारी बनाना, टिकट देना हो रहा है, यह तो शुरुआत है। अगर संतुलन नहीं बनाया गया और निष्पक्ष कार्यशैली नहीं रखी गई तो पार्टी को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।